आगामी 5 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झारखंड के पलामू दौरे पर होंगे. वो आधा घंटा वहां रुकेंगे और इस दौरान कई सरकारी योजनाओं का शिलान्यास करेंगे. पीएम मोदी के कार्यक्रम में काले कपड़े पहनने या काले रंग का सामान ले जाने पर रोक लगा दी गई है.
पलामू के पुलिस कप्तान इंद्रजीत महथा ने इस बाबत पलामू, लातेहार, गढ़वा और चतरा के डीसी को एक पत्र लिखा है. 29 दिसंबर, 2018 को लिखे गए इस पत्र में साफ-साफ कहा गया है कि कार्यक्रम में आने वाले किसी भी सरकारी कर्मचारी या सामान्य लोगों को किसी भी प्रकार का काला सामान या वस्त्र नहीं लाना है. इतना ही नहीं, इस पत्र में उन सभी सामानों के नाम तक लिखे गए हैं जिन्हें खास तौर से नहीं लाना है. पत्र में लिखा गया है, 'निर्देशित कर दिया जाए कि माननीय प्रधानमंत्री, भारत सरकार के कार्यक्रम सभा स्थल पर कोई भी कर्मी/लोग काले रंग की पोशाक जैसे-काले रंग की चादर, पैंट, शर्ट, कोट, स्वेटर, मफलर, टाई, जूता, मोजा आदि पहनकर या काले रंग का बैग, पर्स, कपड़ा आदि लेकर सभा स्थल पर न आएं. तथा सभी कर्मी/लोग अपने साथ कोई भी पहचान पत्र अवश्य लाएं.’
aajtak.in ने इस पत्र के बारे में बात करने के लिए पलामू के पुलिस अधीक्षक इंद्रजीत महथा से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया. हालांकि, एक स्थानीय अखबार इस से बारे में बात करते हुए उन्होंने इस कदम को सुरक्षा के लिए जरूरी बताया. उन्होंने बताया, 'यह आंतरिक मामला है. सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा किया जा रहा है, ताकि सभा स्थल पर किसी को काला कपड़ा या काला सामान की वजह से परेशानी न हो.'
बता दें कि इसी साल जुलाई में पीएम मोदी राजस्थान की राजधानी जयपुर में थे. वहां राज्य भर से करीब सवा दो लाख सरकारी योजनाओं के लाभार्थी मोदी से सीधे संवाद का कार्यक्रम था, लेकिन जो लोग काली पैंट, काला दुपट्टा, काली टोपी पहन कर आ गए थे उन्हें सभा में जाने से रोक दिया गया था. मोदी की सभा में काले कपड़े पहन कर आने वाले लोगों को मुश्किल का सामना करना पड़ा. लोगों की काली बनियान तक उतरवा ली गई थी.
गौरतलब है कि जब पीएम मोदी की राजस्थान के झुंझुनू में रैली हुई थी, उस दौरान इस तरह की स्थिति देखने को मिली थी जब सभा स्थल पर आए लोगों ने काला कपड़ा लहरा दिया था और धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया था.
मारपीट के आरोपों को बताया गलत
वहीं, देवरिया जेल के अधीक्षक डीके पांडे मोहित जायसवाल के आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि मारपीट की सूचना पूरी तरह गलत है. दोनों के बीच नियम कायदों के मुताबिक मुलाकात हुई. जायसवाल ने इस संबंध में उन्हें कोई शिकायत नहीं की है.
डीके पांडेय ने कहा कि 26 तारीख को मोहित जायसवाल, अतीक अहमद से मिलने आए थे. दिन में 11 बजे एक आदमी के साथ आए मोहित की मुलाक़ात अतीक से जेल नियमों के अनुसार कराई गई थी. अपहरण करने के मामले की कोई जानकारी नहीं है. मैं इस मामले में आंतरिक रूप से जांच करूंगा. सीसीटीवी फुटेज भी देखूंगा. वहीं, इस मामले में मोहित की शिकायत पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है और जांच शुरू कर दी है.
Monday, December 31, 2018
Wednesday, December 26, 2018
मामूली सी बात पर किया था युवक का कत्ल, राज खुला तो हैरान रह गई पुलिस
बात करीब दो माह पुरानी है. राजधानी दिल्ली के मयूर विहार इलाके में मामूली सी बात पर एक नौजवान को आधी रात के वक्त गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया गया था. मामला कत्ल का था, लिहाजा पुलिस ने तेजी से मामले की छानबीन शुरू की. पुलिस कातिलों का सुराग लगाने की कोशिश कर रही थी. मगर कुछ हाथ नहीं आ रहा था. कत्ल की ये गुत्थी सुलझती जा रही थी.
कुछ दिनों बाद आखिरकार कानून के हाथ क़ातिल तक जा पहुंचे. दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उसके बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि आरोपी कातिल गाज़ियाबाद का शातिर बदमाश है. फिर मामले की पर्तें खुलना शुरू हुईं. पुलिस के मुताबिक आरोपी बदमाश वारदात की उस रात मयूर विहार के एक स्टोर पर पहुंचा था. वहीं मक्तूल योगेश भी कुछ सामान लेने आया था. न जाने किस बात पर दोनों के बीच कहासुनी होने लगी.
इसी दौरान योगेश ने आरोपी की कार का शीशा तोड़ दिया. फिर क्या था आरोपी पिस्तौल निकाली और गुस्से में गोली चला दी. गोली सीधी मक्तूल को जाकर लगी और वो हमेशा के लिए मौत की नींद सो गया. पुलिस ने जांच और पूछताछ के बाद जो खुलासा किया वो भी हैरान करने वाला था. पुलिस के मुताबिक मयूर विहार में एक डिपार्टमेंटल स्टोर के बाहर महज़ कंधा टच होने और पार्किंग के झगड़े में ये कत्ल हुआ. जिसे सिद्धांत वर्मा नामक शातिर बदमाश ने अंजाम दिया. वह गाजियाबाद का ही रहने वाला है.
दरअसल, पुलिस ने कत्ल की इस गुत्थी को सुलझाने के लिए लोकल इंटेलिजेंस, टेक्नीकल सर्विलांस और दूसरे सुराग़ों की मदद ली. जब जाकर शातिर बदमाश सिद्धांत गिरफ्तार किया गया. पूछताछ में ना सिर्फ़ उसने गुस्से में योगेश नाम के लड़के का क़त्ल करने के बाद कुबूल कर ली, बल्कि ये भी बताया कि उस रात योगेश से लड़ाई के बाद उसने योगेश को डराने के लिए एक डायलॉग भी मारा था. उसने कत्ल से पहले योगेश से कहा था कि "जितनी तेरी उम्र नहीं है, उससे ज़्यादा मुझपे केस लगे हैं."
वैसे इस छंटे हुए बदमाश का ये जुमला अपनी जगह था, क्योंकि इस पर इस क़त्ल से पहले भी जुर्म के तीस से ज़्यादा मामले दर्ज हैं. पांडव नगर पुलिस के मुताबिक 9 नवंबर की रात करीब 1 बजे सिद्धांत नामक बदमाश 24X7 नाम के एक डिपार्टमेंटल स्टोर के बाहर खड़ा था. वो अपनी कार में एक दोस्त के साथ वहां कुछ खाने पहुंचा था. तभी योगेश वहां अपने बीमार भाई के लिए कुछ खरीदने पहुंचा. इसी दौरान पहले दोनों के बीच गाड़ी की पार्किंग को लेकर झगड़ा हुआ और फिर स्टोर के गेट पर दोनों का कंधा एक-दूसरे से टच हो गया. बस इसी बात पर दोनों में विवाद कुछ इतना बढ़ा कि योगेश ने गुस्से में आकर वहीं पड़ी एक रॉड से सिद्धांत की कार का शीशा तोड़ दिया. इससे सिद्धांत इतना गुस्सा हुआ कि उसने योगेश पर पांच गोली चलाई और फ़रार हो गया.
उधर, योगेश के दोस्त उसे लेकर अस्पताल पहुंचे. उसे दो गोली लगी थी और डॉक्टरों ने उसे मुर्दा करार दे दिया. क़त्ल की इस सनसनीखेज वारदात ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी. पुलिस के मुताबिक 24×7 के बाहर लगे कैमरों की सीसीटीवी फुटेज, लोकल नेटवर्क और दूसरे इनपुट के ज़रिए पुलिस को सिद्धांत का पता चल पाया. सिद्धांत ने पुलिस से बचने के लिए अपनी दाढ़ी मुड़वा ली थी और गाड़ी का नंबर प्लेट भी चेंज कर ली थी. लेकिन आख़िरकार वो पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया.
बहरहाल, अब पुलिस ने इस मामले को तो सुलझा लिया है. लेकिन योगेश के घरवालों का ज़ख्म अब कभी नहीं भरेगा. योगेश शादीशुदा था और उसे एक बेटी भी है, जबकि उसकी वाइफ़ प्रेग्नेंट है. ऐसे में महज़ गुस्से ने एक पूरे के पूरे परिवार को तबाह कर दिया.
कुछ दिनों बाद आखिरकार कानून के हाथ क़ातिल तक जा पहुंचे. दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उसके बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि आरोपी कातिल गाज़ियाबाद का शातिर बदमाश है. फिर मामले की पर्तें खुलना शुरू हुईं. पुलिस के मुताबिक आरोपी बदमाश वारदात की उस रात मयूर विहार के एक स्टोर पर पहुंचा था. वहीं मक्तूल योगेश भी कुछ सामान लेने आया था. न जाने किस बात पर दोनों के बीच कहासुनी होने लगी.
इसी दौरान योगेश ने आरोपी की कार का शीशा तोड़ दिया. फिर क्या था आरोपी पिस्तौल निकाली और गुस्से में गोली चला दी. गोली सीधी मक्तूल को जाकर लगी और वो हमेशा के लिए मौत की नींद सो गया. पुलिस ने जांच और पूछताछ के बाद जो खुलासा किया वो भी हैरान करने वाला था. पुलिस के मुताबिक मयूर विहार में एक डिपार्टमेंटल स्टोर के बाहर महज़ कंधा टच होने और पार्किंग के झगड़े में ये कत्ल हुआ. जिसे सिद्धांत वर्मा नामक शातिर बदमाश ने अंजाम दिया. वह गाजियाबाद का ही रहने वाला है.
दरअसल, पुलिस ने कत्ल की इस गुत्थी को सुलझाने के लिए लोकल इंटेलिजेंस, टेक्नीकल सर्विलांस और दूसरे सुराग़ों की मदद ली. जब जाकर शातिर बदमाश सिद्धांत गिरफ्तार किया गया. पूछताछ में ना सिर्फ़ उसने गुस्से में योगेश नाम के लड़के का क़त्ल करने के बाद कुबूल कर ली, बल्कि ये भी बताया कि उस रात योगेश से लड़ाई के बाद उसने योगेश को डराने के लिए एक डायलॉग भी मारा था. उसने कत्ल से पहले योगेश से कहा था कि "जितनी तेरी उम्र नहीं है, उससे ज़्यादा मुझपे केस लगे हैं."
वैसे इस छंटे हुए बदमाश का ये जुमला अपनी जगह था, क्योंकि इस पर इस क़त्ल से पहले भी जुर्म के तीस से ज़्यादा मामले दर्ज हैं. पांडव नगर पुलिस के मुताबिक 9 नवंबर की रात करीब 1 बजे सिद्धांत नामक बदमाश 24X7 नाम के एक डिपार्टमेंटल स्टोर के बाहर खड़ा था. वो अपनी कार में एक दोस्त के साथ वहां कुछ खाने पहुंचा था. तभी योगेश वहां अपने बीमार भाई के लिए कुछ खरीदने पहुंचा. इसी दौरान पहले दोनों के बीच गाड़ी की पार्किंग को लेकर झगड़ा हुआ और फिर स्टोर के गेट पर दोनों का कंधा एक-दूसरे से टच हो गया. बस इसी बात पर दोनों में विवाद कुछ इतना बढ़ा कि योगेश ने गुस्से में आकर वहीं पड़ी एक रॉड से सिद्धांत की कार का शीशा तोड़ दिया. इससे सिद्धांत इतना गुस्सा हुआ कि उसने योगेश पर पांच गोली चलाई और फ़रार हो गया.
उधर, योगेश के दोस्त उसे लेकर अस्पताल पहुंचे. उसे दो गोली लगी थी और डॉक्टरों ने उसे मुर्दा करार दे दिया. क़त्ल की इस सनसनीखेज वारदात ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी. पुलिस के मुताबिक 24×7 के बाहर लगे कैमरों की सीसीटीवी फुटेज, लोकल नेटवर्क और दूसरे इनपुट के ज़रिए पुलिस को सिद्धांत का पता चल पाया. सिद्धांत ने पुलिस से बचने के लिए अपनी दाढ़ी मुड़वा ली थी और गाड़ी का नंबर प्लेट भी चेंज कर ली थी. लेकिन आख़िरकार वो पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया.
बहरहाल, अब पुलिस ने इस मामले को तो सुलझा लिया है. लेकिन योगेश के घरवालों का ज़ख्म अब कभी नहीं भरेगा. योगेश शादीशुदा था और उसे एक बेटी भी है, जबकि उसकी वाइफ़ प्रेग्नेंट है. ऐसे में महज़ गुस्से ने एक पूरे के पूरे परिवार को तबाह कर दिया.
Monday, December 17, 2018
प्रियंका का पर्दे के पीछे रहना क्या कांग्रेस की रणनीति है? : नज़रिया
11 दिसंबर को जैसे-जैसे चुनाव के फ़ैसले आते गए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जय-जयकार बढ़ती ही जा रही थी लेकिन एक चेहरा जो हमेशा राहुल के इर्द गिर्द दिखता था वो इस चुनावी मौसम में एक दम नहीं दिखा.
वो चेहरा था राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी का.
वो प्रियंका गांधी जिन्होंने राहुल गांधी की पहली चुनावी रैली में अपने भाई को बाकायदा आगे बढ़ाया था.
अगर तस्वीरों पर नज़र डालें तो सबसे ज़्यादा वो तस्वीरें उभरती हैं जिसमें लोगों के बीच में राहुल और प्रियंका बैठे हैं और राहुल ने प्रियंका के कंधे पर हाथ रखा हुआ है.
तो कहां गई प्रियंका गांधी? क्या कांग्रेस के राजनीतिक पटल से प्रियंका एकदम गायब हो चुकी हैं?
कहां गई प्रियंका गांधी
इस चुनावी मौसम राहुल गांधी की रैलियां या बयान काफ़ी चर्चा में रहे. प्रधानमंत्री मोदी पर उनके आरोपों ने काफ़ी सुर्खियां बटोरी लेकिन राहुल गांधी को आगे बढ़ाती प्रियंका न किसी रैली में दिखीं न ही ख़बरों में.
और तो और ये पहला चुनावी मौसम था जिसमें प्रियंका गांधी की चर्चा भी नहीं की गई.
गुजरात चुनाव के दौरान जहां राहुल गांधी के नए रूप को बार बार देखा गया, वहां प्रियंका की सक्रियता भी दिखती थी.
कांग्रेस अधिवेशन में मंच पर भले ही सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने मोर्चा संभाला था लेकिन मंच के पीछे का इंतजाम प्रियंका गांधी ने ही अपने जिम्मे लिया था.
कांग्रेस नेताओं के मुताबिक प्रियंका ने एक अच्छे प्रशासक की तरह छोटी छोटी बातों का ध्यान रखा था. एक तरफ वो मच्छरों से निजात पाने के लिए स्प्रे कराती हुई नज़र आई थीं तो साथ ही पर्दे के पीछे से वॉकी-टॉकी लेकर इंतज़ाम में तालमेल बनाती नज़र आईं थी.
इतना ही नहीं, प्रियंका ने ही मंच पर बोलने वाले वक्ताओं की सूची को अंतिम रूप दिया और पहली बार युवा और अनुभवी वक्ताओं का एक मिश्रण दिया. यहां तक कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी समेत क़रीब-क़रीब सभी के भाषण के 'फैक्ट चेक' का जिम्मा भी लिया.
वो चेहरा था राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी का.
वो प्रियंका गांधी जिन्होंने राहुल गांधी की पहली चुनावी रैली में अपने भाई को बाकायदा आगे बढ़ाया था.
अगर तस्वीरों पर नज़र डालें तो सबसे ज़्यादा वो तस्वीरें उभरती हैं जिसमें लोगों के बीच में राहुल और प्रियंका बैठे हैं और राहुल ने प्रियंका के कंधे पर हाथ रखा हुआ है.
तो कहां गई प्रियंका गांधी? क्या कांग्रेस के राजनीतिक पटल से प्रियंका एकदम गायब हो चुकी हैं?
कहां गई प्रियंका गांधी
इस चुनावी मौसम राहुल गांधी की रैलियां या बयान काफ़ी चर्चा में रहे. प्रधानमंत्री मोदी पर उनके आरोपों ने काफ़ी सुर्खियां बटोरी लेकिन राहुल गांधी को आगे बढ़ाती प्रियंका न किसी रैली में दिखीं न ही ख़बरों में.
और तो और ये पहला चुनावी मौसम था जिसमें प्रियंका गांधी की चर्चा भी नहीं की गई.
गुजरात चुनाव के दौरान जहां राहुल गांधी के नए रूप को बार बार देखा गया, वहां प्रियंका की सक्रियता भी दिखती थी.
कांग्रेस अधिवेशन में मंच पर भले ही सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने मोर्चा संभाला था लेकिन मंच के पीछे का इंतजाम प्रियंका गांधी ने ही अपने जिम्मे लिया था.
कांग्रेस नेताओं के मुताबिक प्रियंका ने एक अच्छे प्रशासक की तरह छोटी छोटी बातों का ध्यान रखा था. एक तरफ वो मच्छरों से निजात पाने के लिए स्प्रे कराती हुई नज़र आई थीं तो साथ ही पर्दे के पीछे से वॉकी-टॉकी लेकर इंतज़ाम में तालमेल बनाती नज़र आईं थी.
इतना ही नहीं, प्रियंका ने ही मंच पर बोलने वाले वक्ताओं की सूची को अंतिम रूप दिया और पहली बार युवा और अनुभवी वक्ताओं का एक मिश्रण दिया. यहां तक कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी समेत क़रीब-क़रीब सभी के भाषण के 'फैक्ट चेक' का जिम्मा भी लिया.
Thursday, December 13, 2018
युवा सिंधिया पर भारी पड़े कमलनाथ, राहुल ने इस कारण जताया भरोसा
दो दिन के मंथन के बाद आखिरकार मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्री का नाम तय हो गया है. अनुभवी कमलनाथ मध्य प्रदेश और अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री हो गए हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तरफ से दोनों के नाम पर मुहर लग चुकी है और सिर्फ औपचारिक ऐलान होना बाकी है.
कमलनाथ का नाम काफी समय से मुख्यमंत्री की रेस में आगे चल रहा था, लेकिन युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया से उन्हें टक्कर मिल रही थी. लेकिन राहुल गांधी ने युवा शक्ति के बजाय अनुभव को तवज्जो देना ठीक समझा.
राजस्थान में गहलोत का राज
गौरतलब है कि राजस्थान में भी अब ये लगभग तय हो गया है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही होंगे. लगातार चली बैठकों के दौर के बाद अशोक गहलोत का नाम तय किया गया है और सचिन पायलट के समर्थकों को मनाने की कोशिशें चल रही हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजस्थान की सत्ता युवा हाथों में ना देकर तजुर्बे को तवज्जो दी है.
कमलनाथ ही थे पहली पसंद
कमलनाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, पिछले काफी समय से वह राज्य में कांग्रेस की जीत के लिए पिच तैयार कर रहे थे. 15 साल बाद कांग्रेस का वनवास कमलनाथ की अगुवाई में ही खत्म हो पाया है, हालांकि MP में कांग्रेस बहुमत से दो सीट दूर रही लेकिन सपा-बसपा ने इस चिंता को भी दूर कर दिया.
पिछड़ गए 'महाराज'!
सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की रेस में थे. सिंधिया कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी रहे हैं जिसका फायदा उन्हें मिलता हुआ दिख रहा था. हालांकि, अनुभव की कमी होना सिंधिया के खिलाफ जाता दिखा. महाराज के नाम से मशहूर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश के मुकाबले दिल्ली में अधिक काम किया है. शायद यही कारण रहा कि राहुल ने बतौर मुख्यमंत्री उन्हें नहीं चुना. साफ है कि राहुल गांधी की नजर अब 2019 पर है और वो कमलनाथ के अनुभव का फायदा लेना चाहते हैं.
क्यों खास हैं कमलनाथ?
शिवराज सिंह चौहान के विपरीत कमलनाथ को एक समृद्ध राजनेता के तौर पर देखा जाता है. कमलनाथ का जन्म कानपुर में हुआ और वह कोलकाता में पले-बढ़े हैं. उनकी पढ़ाई दून स्कूल से हुई है. वह कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से स्नातक हैं. कमलनाथ पहली बार 1980 में लोकसभा सांसद चुने गए थे. उसके बाद 1985, 1989, 1991 तक लगातार लोकसभा चुनाव जीतते रहे.
छिंदवाड़ा लोकसभा से 9 बार सांसद रह चुके कमलनाथ ने राज्य में कांग्रेस की जीत में अहम भूमिका निभाई है. वह पिछले कई दशकों से राज्य में जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं और यहां उनका मजबूत जनाधार भी है.
कमलनाथ का नाम काफी समय से मुख्यमंत्री की रेस में आगे चल रहा था, लेकिन युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया से उन्हें टक्कर मिल रही थी. लेकिन राहुल गांधी ने युवा शक्ति के बजाय अनुभव को तवज्जो देना ठीक समझा.
राजस्थान में गहलोत का राज
गौरतलब है कि राजस्थान में भी अब ये लगभग तय हो गया है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही होंगे. लगातार चली बैठकों के दौर के बाद अशोक गहलोत का नाम तय किया गया है और सचिन पायलट के समर्थकों को मनाने की कोशिशें चल रही हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजस्थान की सत्ता युवा हाथों में ना देकर तजुर्बे को तवज्जो दी है.
कमलनाथ ही थे पहली पसंद
कमलनाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, पिछले काफी समय से वह राज्य में कांग्रेस की जीत के लिए पिच तैयार कर रहे थे. 15 साल बाद कांग्रेस का वनवास कमलनाथ की अगुवाई में ही खत्म हो पाया है, हालांकि MP में कांग्रेस बहुमत से दो सीट दूर रही लेकिन सपा-बसपा ने इस चिंता को भी दूर कर दिया.
पिछड़ गए 'महाराज'!
सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की रेस में थे. सिंधिया कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी रहे हैं जिसका फायदा उन्हें मिलता हुआ दिख रहा था. हालांकि, अनुभव की कमी होना सिंधिया के खिलाफ जाता दिखा. महाराज के नाम से मशहूर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश के मुकाबले दिल्ली में अधिक काम किया है. शायद यही कारण रहा कि राहुल ने बतौर मुख्यमंत्री उन्हें नहीं चुना. साफ है कि राहुल गांधी की नजर अब 2019 पर है और वो कमलनाथ के अनुभव का फायदा लेना चाहते हैं.
क्यों खास हैं कमलनाथ?
शिवराज सिंह चौहान के विपरीत कमलनाथ को एक समृद्ध राजनेता के तौर पर देखा जाता है. कमलनाथ का जन्म कानपुर में हुआ और वह कोलकाता में पले-बढ़े हैं. उनकी पढ़ाई दून स्कूल से हुई है. वह कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से स्नातक हैं. कमलनाथ पहली बार 1980 में लोकसभा सांसद चुने गए थे. उसके बाद 1985, 1989, 1991 तक लगातार लोकसभा चुनाव जीतते रहे.
छिंदवाड़ा लोकसभा से 9 बार सांसद रह चुके कमलनाथ ने राज्य में कांग्रेस की जीत में अहम भूमिका निभाई है. वह पिछले कई दशकों से राज्य में जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं और यहां उनका मजबूत जनाधार भी है.
Monday, December 10, 2018
एनपीएस में सरकार ने योगदान 10% से बढ़ाकर 14% किया, 36 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को फायदा
केंद्र सरकार ने नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) में अपना योगदान 10% से बढ़ाकर 14% करने का फैसला लिया है। यह अगले वित्त वर्ष (2019-20) से लागू होगा। कर्मचारियों के लिए न्यूनतम योगदान 10% ही रहेगा। टैक्स वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को यह जानकारी दी। इस फैसले से 36 लाख से ज्यादा केंद्रीय कर्मचारियों को फायदा होगा।
रिटायरमेंट के समय कर्मचारी एनपीएस की 60% रकम निकालेंगे तो उन्हें टैक्स भी नहीं चुकाना होगा। यानी पूरी रकम की निकासी टैक्स फ्री होगी। क्योंकि, 40% राशि एन्युटि में जाती है। रकम निकासी पर टैक्स छूट सभी श्रेणियों के कर्मचारियों के लिए लागू होगी।
वित्त मंत्री ने बताया कि एनपीएस में सरकार का योगदान बढ़ने से वित्त वर्ष 2019-20 में 2,840 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा। एनपीएस को ईईई (एक्जेम्प्ट-एक्जेम्प्ट-एक्जेम्प्ट) श्रेणी में लाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी।
क्या है एनपीएस ?
यह सरकारी पेंशन स्कीम है। जनवरी 2004 में यह सरकारी कर्मचारियों के लिए शुरू की गई थी। लेकिन, 2009 में सभी के लिए खोल दी गई। कर्मचारी अपने सेवाकाल के दौरान एनपीएस खाते में योगदान देता है। रिटायरमेंट पर वह 60% रकम निकाल सकता है। बाकी 40% रकम एन्युटि स्कीम में लगा सकता है। जिससे रिटायरमेंट के बाद नियमित आय होती रहती है।
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) अध्यक्ष एम के स्टालिन, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव, असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के बदरुद्दीन अजमल, झारखंड विकास मोर्चा के बाबुलाल मरांडी और लोकतांत्रिक जनता दल (एलजेडी) के नेता शरद यादव भी इस बैठक में शामिल हुए।
खुद को बचाने के लिए साथ आ रहीं विपक्षी पार्टियां- भाजपा
भाजपा ने कहा कि विपक्ष की यह बैठक केवल फोटो खिचाने के लिए है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि भ्रष्ट विपक्षी दल खुद को बचाने के लिए साथ आ रहे हैं। वहीं, भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि महागठबंधन को पहले प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तय करना चाहिए, इसके बाद उन्हें मोदी को हटाने के बारे में सोचना चाहिए।
रिटायरमेंट के समय कर्मचारी एनपीएस की 60% रकम निकालेंगे तो उन्हें टैक्स भी नहीं चुकाना होगा। यानी पूरी रकम की निकासी टैक्स फ्री होगी। क्योंकि, 40% राशि एन्युटि में जाती है। रकम निकासी पर टैक्स छूट सभी श्रेणियों के कर्मचारियों के लिए लागू होगी।
वित्त मंत्री ने बताया कि एनपीएस में सरकार का योगदान बढ़ने से वित्त वर्ष 2019-20 में 2,840 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा। एनपीएस को ईईई (एक्जेम्प्ट-एक्जेम्प्ट-एक्जेम्प्ट) श्रेणी में लाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी।
क्या है एनपीएस ?
यह सरकारी पेंशन स्कीम है। जनवरी 2004 में यह सरकारी कर्मचारियों के लिए शुरू की गई थी। लेकिन, 2009 में सभी के लिए खोल दी गई। कर्मचारी अपने सेवाकाल के दौरान एनपीएस खाते में योगदान देता है। रिटायरमेंट पर वह 60% रकम निकाल सकता है। बाकी 40% रकम एन्युटि स्कीम में लगा सकता है। जिससे रिटायरमेंट के बाद नियमित आय होती रहती है।
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) अध्यक्ष एम के स्टालिन, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव, असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के बदरुद्दीन अजमल, झारखंड विकास मोर्चा के बाबुलाल मरांडी और लोकतांत्रिक जनता दल (एलजेडी) के नेता शरद यादव भी इस बैठक में शामिल हुए।
खुद को बचाने के लिए साथ आ रहीं विपक्षी पार्टियां- भाजपा
भाजपा ने कहा कि विपक्ष की यह बैठक केवल फोटो खिचाने के लिए है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि भ्रष्ट विपक्षी दल खुद को बचाने के लिए साथ आ रहे हैं। वहीं, भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि महागठबंधन को पहले प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तय करना चाहिए, इसके बाद उन्हें मोदी को हटाने के बारे में सोचना चाहिए।
Wednesday, December 5, 2018
डॉक्टरों का कमाल, मृत महिला से दान में मिले गर्भाशय से हुआ बच्चे का जन्म
ब्राजील के डॉक्टरों ने एक बड़ा कारनामा कर दिखाया है. मेडिकल इतिहास में पहली बार एक मृत महिला से मिले गर्भाशय से एक बच्चे का जन्म हुआ है. इससे पहले भी मृत महिला के गर्भाशय ट्रांसप्लांट के जरिए ऐसा करने की कोशिश की गई थी, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिल पाई थी.
एक अंग्रेजी वेबसाइट के मुताबिक रिसर्च का नेतृत्व साओ पॉलो यूनिवर्सिटी की डॉक्टर डानी इजेनबर्ग ने बताया कि मृत महिला के गर्भाशय का ट्रांसप्लांट सितंबर, 2016 में किया गया था. जिस महिला के शरीर में यह गर्भाशय ट्रांसप्लांट कर लगाया गया था तब उसकी उम्र 32 वर्ष थी. यह महिला दुर्लभ सिंड्रोम की वजह से बिना गर्भाशय के पैदा हुई थी.
उन्होंने कहा कि डोनर (मृत महिला) के गर्भाशय को महिला की वेन्स से जोड़ा गया और आर्टरीज, लिगामेंट्स और वजाइनल कनाल को लिंक किया गया. गर्भाशय दान देने वाली महिला की जब मौत हुई तब उसकी उम्र 45 वर्ष थी. उसकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी. उसके तीन बच्चे थे.
चेक गणराज्य, तुर्की और अमेरिका में मृत डोनर का उपयोग करने के पिछले 10 प्रयास असफल रहे हैं. उन्होंने कहा कि महिला की जिंदगी में यह सबसे अहम चीज थी. अब वो हमारे पास आकर अपनी बच्ची को दिखाती और वह इससे खुश है.
पिछले साल हुआ बच्ची का जन्म
बच्ची का जन्म पिछले साल दिसंबर में हुआ था. डॉक्टरों के अनुसार गर्भाशय ट्रांसप्लांट के पांच महीने बाद ही महिला के सभी टेस्ट नॉर्मल आ रहे थे. उनका अल्ट्रासाउंड नॉर्मल था और उन्हें मेंस्ट्रूएशन भी समय पर हो रहा था. इसके बाद महिला के पहले से फ्रीज किए हुए एग्स को ट्रांसप्लांट के सात महीने बाद इंप्लांट किया गया और 10 दिन बाद उनकी प्रेगनेंसी कंफर्म हो गई.
जीवित दाता (डोनर) से प्राप्त गर्भाशय के जरिए बच्चे का सफलतापूर्वक जन्म कराने की पहली घटना 2014 में स्वीडन में हुई थी. इसके बाद से 10 और बच्चों का इस तरह से जन्म कराया गया है. हालांकि, संभावित जीवित दाताओं की तुलना में प्रतिरोपण की चाह रखने वाली महिलाओं की संख्या अधिक है. इसलिए चिकित्सक यह पता लगाना चाहते थे कि क्या किसी मृत महिला के गर्भाशय का इस्तेमाल करके इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सकता है.
एक अंग्रेजी वेबसाइट के मुताबिक रिसर्च का नेतृत्व साओ पॉलो यूनिवर्सिटी की डॉक्टर डानी इजेनबर्ग ने बताया कि मृत महिला के गर्भाशय का ट्रांसप्लांट सितंबर, 2016 में किया गया था. जिस महिला के शरीर में यह गर्भाशय ट्रांसप्लांट कर लगाया गया था तब उसकी उम्र 32 वर्ष थी. यह महिला दुर्लभ सिंड्रोम की वजह से बिना गर्भाशय के पैदा हुई थी.
उन्होंने कहा कि डोनर (मृत महिला) के गर्भाशय को महिला की वेन्स से जोड़ा गया और आर्टरीज, लिगामेंट्स और वजाइनल कनाल को लिंक किया गया. गर्भाशय दान देने वाली महिला की जब मौत हुई तब उसकी उम्र 45 वर्ष थी. उसकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी. उसके तीन बच्चे थे.
चेक गणराज्य, तुर्की और अमेरिका में मृत डोनर का उपयोग करने के पिछले 10 प्रयास असफल रहे हैं. उन्होंने कहा कि महिला की जिंदगी में यह सबसे अहम चीज थी. अब वो हमारे पास आकर अपनी बच्ची को दिखाती और वह इससे खुश है.
पिछले साल हुआ बच्ची का जन्म
बच्ची का जन्म पिछले साल दिसंबर में हुआ था. डॉक्टरों के अनुसार गर्भाशय ट्रांसप्लांट के पांच महीने बाद ही महिला के सभी टेस्ट नॉर्मल आ रहे थे. उनका अल्ट्रासाउंड नॉर्मल था और उन्हें मेंस्ट्रूएशन भी समय पर हो रहा था. इसके बाद महिला के पहले से फ्रीज किए हुए एग्स को ट्रांसप्लांट के सात महीने बाद इंप्लांट किया गया और 10 दिन बाद उनकी प्रेगनेंसी कंफर्म हो गई.
जीवित दाता (डोनर) से प्राप्त गर्भाशय के जरिए बच्चे का सफलतापूर्वक जन्म कराने की पहली घटना 2014 में स्वीडन में हुई थी. इसके बाद से 10 और बच्चों का इस तरह से जन्म कराया गया है. हालांकि, संभावित जीवित दाताओं की तुलना में प्रतिरोपण की चाह रखने वाली महिलाओं की संख्या अधिक है. इसलिए चिकित्सक यह पता लगाना चाहते थे कि क्या किसी मृत महिला के गर्भाशय का इस्तेमाल करके इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सकता है.
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