पर, इस दुनिया को कामबायी का नशा है. इस क़दर नशा है कि हर नाकामी को भुला दिया जाता है. जबकि लोग नाकामियों से ही सीख कर कामयाब होते आए हैं.
इसीलिए, स्वीडन में एक ख़ास म्यूज़ियम खोला गया है, म्यूज़ियम ऑफ़ फेल्योर, यानी नाकामी का अजायबघर.
ये विचित्र म्यूज़ियम स्वीडन के हेलसिंगबोर्ग शहर में है. इस म्यूज़ियम का रख-रखाव करने वाले सैमुअल वेस्ट कहते हैं कि, 'इस म्यूज़ियम का हिस्सा बनने की पहली शर्त है कि कोई भी चीज़ एक आविष्कार होनी चाहिए. दूसरी शर्त है कि उसे नाकाम होना चाहिए.'
सैमुअल वेस्ट कहते हैं कि, 'नाकामी से मतलब यह है कि किसी उत्पाद के वैसे नतीजे नहीं आए, जिस तरह की उम्मीद थी.'
सैमुअल ने इस में एक और शर्त जोड़ते हुए कहा कि, 'इस म्यूज़ियम का हिस्सा बनने की तीसरी शर्त ये है कि ये दिलचस्प होना चाहिए.कोई उत्पाद दिलचस्प है या नहीं इसे मैं ही तय करूंगा.'
वो इसकी मिसाल देते हैं, अटारी ई.टी. नाम के वीडियो गेम को. सैमुअल कहते हैं कि इस वीडियो गेम को दुनिया का सबसे वाहियात वीडियो गेम कहा जाता है. लोग इससे नफ़रत करते थे.
वजह यह कि इसका अहम किरदार ई.टी. जब चलता था तो वो अक्सर गड्ढों में ऐसा फंस जाता था कि निकल ही नहीं पाता था. लेकिन, इतने ख़राब वीडियो गेम के भी कुछ लोग ऐसे शैदाई हुए कि आज भी इसकी कॉपी अपने पास रखते हैं.
सैमुअल के म्यूज़ियम में रखी एक और नाकाम चीज़ है सोनी बीटामैक्स. ये टेप रिकॉर्ड प्लेयर था, जो चला ही नहीं.
कहा जाता है कि सोनी ने पोर्न उद्योग को बीटामैक्स इस्तेमाल करने से रोका था. नतीजा ये कि सोनी का बीटामैक्स बुरी तरह नाकाम रहा और इसकी जगह वीएचएस ने बाज़ी मार ली.
म्यूज़ियम में ही बिक नाम का पेन भी है, जिसे ख़ास महिलाओं के लिए बनाया गया था.
सैमुअल वेस्ट कहते हैं कि, ''नाकामी तकलीफ़ देती है. ये हमारे हौसले, हमारे आत्मविश्वास को चोट पहुंचाती है. नाकामी पर हारा हुआ महसूस करना इंसान की बुनियादी फ़ितरत है.''
सैमुअल ने हमें म्यूज़ियम में द रेजुवेनीक़ नाम का एक प्रोडक्ट दिखाया. इसे पहन कर ख़ुद को बिजली का झटका देना होता था, ताकि आप हरदम जवां बने रहें. अब भला इसे कौन ख़रीदता!
फिर यहां पर एक स्नोबोर्ड है, जिसका नाम है द मोनोस्की. इस पर सवारी करना अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती थी. ज़ाहिर है इसे तो नाकाम होना ही था.
सैमुअल हमें अपने म्यूज़ियम में रखी स्पोर्ट्स कार डेलोरियन दिखाते हैं. ये इस क़दर नाकाम साबित हुई थी कि इसे बैक टू द फ्यूचर फ़िल्म का हिस्सा बनाया गया था.
सैमुअल वेस्ट हंसते हुए बताते हैं कि दो कंपनियों ने उनसे संपर्क किया है ताकि उनके नाकाम रहे उत्पादों की नुमाइश न की जाए.
इस म्यूज़ियम के लिए चीज़ें जुटाने का ज़रिया भी मज़ेदार रहा है. कुछ चीज़ें कंपनियों के नाराज़ कर्मचारियों से मिली हैं, तो कुछ को रूसी तस्करों की मदद से हासिल किया गया है.
सैमुअल कहते हैं कि यहां स्वीडन की कई नाकाम चीज़ें हैं. आख़िर ये म्यूज़ियम भी तो स्वीडन में ही है.
इस में सबसे ख़ास है आईटेरा नाम की साइकिल, जो प्लास्टिक की बनी हुई थी. इसे 1982 में बाज़ार में उतारा गया था. आइटेरा चलाते वक़्त इतना लहराती थी कि संतुलन बनाना मुश्किल होता था. ज़ाहिर है इसे कामयाबी मिलनी ही नहीं थी.
स्वीडन में बनी कुछ टॉफ़ी और चॉकलेट भी यहां रखी गई हैं. ये वो उत्पाद हैं जो अमरीकी उत्पादों के मुक़ाबले नहीं टिक सके.
एप्पल कंपनी का न्यूटन नाम का प्रोडक्ट भी यहां रखा है. इसे बनाने में एप्पल कंपनी ने काफ़ी पैसा और वक़्त लगाया था. लेकिन, इसे बाज़ार ने नहीं पसंद किया. गिने-चुने लोगों ने ही इसे ख़रीदा. पर, एप्पल को न्यूटन से ही आईपैड बनाने का रास्ता मिला.
सैमुअल वेस्ट कहते हैं कि यहां आने के बाद लोग अपने आप को क़ैद से आज़ाद हुआ महसूस करते हैं. वो देखते हैं कि जब गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और एप्पल जैसी कंपनियां नाकाम हो सकती हैं. और नाकामी के बाद ज़बरदस्त सफ़लता हासिल कर सकती हैं. तो, फिर उनके नाकाम होने में भी कोई शर्म नहीं.
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