Xiaomi Redmi Note 7 कुछ समय से लगातार टेक जगत के लिए सुर्खियों में है. चीन में यह स्मार्टफोन लॉन्च हो चुका है और बिक्री भी शुरू है. तीन फ्लैश सेल में इसकी काफी बिक्री हुई. तीसरी सेल के दौरान सिर्फ 2 मिनट में एक लाख Redmi Note 7 बिक गए. इसे अच्छा रेस्पॉन्स मिल रहा है, क्योंकि कंपनी ने इसकी कीमत आक्रामक रखी है और इसमें 48 मेगापिक्सल कैमरा है.
शाओमी इंडिया हेड और ग्लोबल वाइस प्रेसिडेंट मनु जैन ने एक ट्वीट किया है. ट्वीट में उन्होंने टेक्स्ट और फोटो अपसाइड डाउन शेयर किया है. उन्होंने अपने ट्वीट में कहा है, ‘हम इस इंडस्ट्री को पलटने वाले हैं. 48 मेगापिक्सल आ रहा है’. कुल मिला कर इस ट्वीट का मतलब साफ है कि कंपनी इसे भारत में जल्दी ही लॉन्च कर सकती है. इस ट्वीट पर लोगों ने सवाल पूछे हैं कि इसे भारत मे कब लॉन्च किया जाएगा. हालांकि कंपनी ने सिर्फ जल्द लॉन्च होने की बात कही है.
शाओमी अब तक मीडिया इन्वाइट्स नहीं भेजे हैं, इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि ये स्मार्टफोन अगले महीने के शुरुआत में या मिड में लॉन्च किया जा सकता है. पिछले साल भी शाओमी ने साल का पहला स्मार्टफोन फरवरी में ही लॉन्च किया था. फिलहाल यह भी साफ नहीं है कि कंपनी भारत में Redmi Note 7 Pro लॉन्च करेगी या फिर Redmi Note 7 को ही लॉन्च किया जाएगा. क्योंकि कुछ दिनों से Redmi Note 7 Pro से जुड़ी खबरें तेजी से आ रही हैं.
Redmi Note 7 में ऐसा क्या है जिसकी वजह से लोगों में क्रेज है?
सबसे बड़ी वजह इसमें दिया गया 48 मेगापिक्सल का रियर कैमरा है. यह शायद दुनिया का सबसे सस्ता स्मार्टफोन है जिसमें 48 मेगापिक्सल का रियर कैमरा दिया गया है. इसकी कीमत चीन में 999 युआन से शुरू होती है जिसे भारतीय रुपये में तब्दील करें तो 10,500 रुपये के करीब होता है. स्मार्टफोन का डिजाइन ग्लास है और इस बार कंपनी ग्रेडिएंट डिजाइन पर चल रही है.
हाल ही में रेडमी ब्रांड के हेड ने Redmi Note 7 का ड्यूरेब्लिटि टेस्ट किया है. इसे स्केटबोर्ड की तरह भी यूज किया गया, लेकिन वीडियो में यह फोन वर्किंग है. इसके अलावा लॉन्च के बाद ये बात सामने आई कि यह स्मार्टफोन कुछ हद तक वॉटर प्रूफ भी है. हालांकि इसे IP सर्टिफिकेशन नहीं मिला है, लेकिन हल्के फुल्के पानी से ये खराब नहीं होता.
Redmi Note 7 के स्पेसिफिकेशन्स की बात करें तो इस स्मार्टफोन में क्वॉल्कॉम स्नैपड्रैगन 660 प्रोसेसर दिया गया है. इसके तीन मेमोरी वेरिएंट्स हैं. इस स्मार्टफोन में 48 मेगापिक्सल का डुअल रियर कैमरा है, जबकि सेल्फी के लिए इसमें 13 मेगापिक्सल का फ्रंट कैमरा दिया गया है.
भारत में इसकी कीमत 10,999 रुपये से शुरू हो सकती है.
प्रियंका गांधी के लोकसभा चुनाव लड़ने पर बुधवार को राहुल गांधी ने कहा था कि ये फैसला पूरी तरह से प्रियंका पर ही निर्भर करेगा. हमारा बड़ा स्टेप लेने के पीछे मकसद यही है कि हम इस चुनाव में बैकफुट पर नहीं फ्रंटफुट पर लड़ेंगे. कांग्रेस पार्टी पूरे दमखम से ये चुनाव लड़ेगी. उन्होंने कहा कि मैं व्यक्तिगत तौर बहुत खुश हूं क्योंकि वह बहुत कर्मठ व सक्षम हैं और अब मेरे साथ काम करेंगी.
बता दें कि प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में कदम रखने से पहले तक वो अमेठी और रायबरेली में ही चुनाव प्रचार तक ही अपने को सीमित रखती थीं. अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली से सोनिया गांधी सांसद है. अब सियासत में कदम रखने के बाद उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई हैं. ये इलाका बीजेपी का मजबूत दुर्ग माना जाता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने बनारस संसदीय सीट से उतरकर पूर्वांचल में सभी दलों का सफाया कर दिया था. महज आजमगढ़ सीट थी जिसे बीजेपी नहीं जीत सकी थी.
हालांकि, पूर्वांचल एक दौर में कांग्रेस का मजबूत इलाका होता था. इस इलाके से कांग्रेस को कई दिग्गज नेता रहे हैं. इंदिरा गांधी के दौर में कमलापति त्रिपाठी सूबे में कांग्रेस का चेहरा हुआ करते थे और वाराणसी सीट से 1980 में सांसद भी चुने गए थे. पूर्वांचल में उनकी तूती बोलती थी.
Thursday, January 24, 2019
Wednesday, January 16, 2019
World Bank अध्यक्ष की रेस में ये भारतीय महिला, दुनिया मानती है लोहा
वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष पद की रेस में पेप्सिको की पूर्व सीईओ इंदिरा नूई भी शामिल हो गई हैं. द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक खबर के मुताबिक व्हाइट हाउस इस पद के लिए इंदिरा नूई के नाम पर विचार कर रहा है. दरअसल,वर्ल्ड बैंक के वर्तमान अध्यक्ष जिम योंग किम ने इस महीने की शुरुआत में बताया था कि वह फरवरी में अपना पद छोड़ देंगे. उनके इस घोषणा के बाद से ही नए अध्यक्ष की तलाश शुरू हो गई है. यहां बता दें कि वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष पद को छोड़ने के बाद योंग किम निवेश कंपनी से जुड़ेंगे.
इवांका ट्रंप की पसंद हैं इंदिरा नूई
द न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ने इंदिरा नूई को प्रशासनिक सहयोगी के अलावा ‘मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत’ बताया है. बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप नए अध्यक्ष के चयन में अहम किरदार निभा रही हैं. अध्यक्ष पद के चयन से जुड़े लोगों के हवाले से खबर में कहा गया है कि अभी चयन प्रक्रिया प्रारंभिक चरण में है. आमतौर पर ऐसे अहम पदों के लिए नामांकन पर अंतिम निर्णय होने तक शुरुआती दावेदार दौड़ से बाहर हो जाते हैं. हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि अगर इस पद के लिए नूई का नामांकन होता है तो वो स्वीकार करेंगी या नहीं.
कौन है इंदिरा नूई
चेन्नई में जन्मीं 63 वर्षीय नूई को देश की ताकतवर महिलाओं में से एक माना जाता है. कई कंपनियों में काम करने के बाद 1994 में इंदिरा ने पेप्सिको ज्वाइन किया. वहीं 2006 में उन्होंने कंपनी की कमान संभाली और इसके बाद से पेप्सिको के शेयर में 78 फीसदी दी तक का इजाफा हो चुका है. उन्होंने 12 साल तक पेप्सिको का कमान संभालने के बाद पिछले साल अगस्त में पद से इस्तीफा दे दिया था. दुनिया की चर्चित पत्रिका फोर्ब्स की सौ सबसे प्रभावशाली महिलाओं की सूची में नूई को कई बार शामिल किया जा चुका है. 2017 में नूई इस सूची में 11वें नंबर पर थीं. साल 2007 में उन्हें भारत का प्रतिष्ठित पद्म भूषण सम्मान भी दिया गया था.
पद के लिए इवांका के नाम की भी थी चर्चा
वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष पद के लिए डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका के नाम की भी चर्चा हो रही थी. लेकिन बीते सोमवार को व्हाइट हाउस की ओर से इस बयान को खारिज करते हुए कहा गया कि वह अमेरिका की नामांकन प्रक्रिया के प्रबंधन में मदद करेंगी क्योंकि उन्होंने पिछले दो वर्षों में विश्व बैंक के नेतृत्व के साथ निकटता से काम किया है.
अध्यक्ष पद के लिए अमेरिका के दखल की वजह
विश्व बैंक के अध्यक्ष पद के लिए अमेरिका की भूमिका काफी अहम है. दरअसल, वर्ल्ड बैंक के सबसे बड़े शेयरधारक होने की वजह से अध्यक्ष पद की नियुक्ति करता है. वर्तमान अध्यक्ष जिम योंग किम को 2012 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नामित किया था. ये पहली बार है जब डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई में वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष का चयन होगा. बता दें कि यूरोपीय देश अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के प्रमुख का चुनाव करते हैं.
इवांका ट्रंप की पसंद हैं इंदिरा नूई
द न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ने इंदिरा नूई को प्रशासनिक सहयोगी के अलावा ‘मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत’ बताया है. बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप नए अध्यक्ष के चयन में अहम किरदार निभा रही हैं. अध्यक्ष पद के चयन से जुड़े लोगों के हवाले से खबर में कहा गया है कि अभी चयन प्रक्रिया प्रारंभिक चरण में है. आमतौर पर ऐसे अहम पदों के लिए नामांकन पर अंतिम निर्णय होने तक शुरुआती दावेदार दौड़ से बाहर हो जाते हैं. हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि अगर इस पद के लिए नूई का नामांकन होता है तो वो स्वीकार करेंगी या नहीं.
कौन है इंदिरा नूई
चेन्नई में जन्मीं 63 वर्षीय नूई को देश की ताकतवर महिलाओं में से एक माना जाता है. कई कंपनियों में काम करने के बाद 1994 में इंदिरा ने पेप्सिको ज्वाइन किया. वहीं 2006 में उन्होंने कंपनी की कमान संभाली और इसके बाद से पेप्सिको के शेयर में 78 फीसदी दी तक का इजाफा हो चुका है. उन्होंने 12 साल तक पेप्सिको का कमान संभालने के बाद पिछले साल अगस्त में पद से इस्तीफा दे दिया था. दुनिया की चर्चित पत्रिका फोर्ब्स की सौ सबसे प्रभावशाली महिलाओं की सूची में नूई को कई बार शामिल किया जा चुका है. 2017 में नूई इस सूची में 11वें नंबर पर थीं. साल 2007 में उन्हें भारत का प्रतिष्ठित पद्म भूषण सम्मान भी दिया गया था.
पद के लिए इवांका के नाम की भी थी चर्चा
वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष पद के लिए डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका के नाम की भी चर्चा हो रही थी. लेकिन बीते सोमवार को व्हाइट हाउस की ओर से इस बयान को खारिज करते हुए कहा गया कि वह अमेरिका की नामांकन प्रक्रिया के प्रबंधन में मदद करेंगी क्योंकि उन्होंने पिछले दो वर्षों में विश्व बैंक के नेतृत्व के साथ निकटता से काम किया है.
अध्यक्ष पद के लिए अमेरिका के दखल की वजह
विश्व बैंक के अध्यक्ष पद के लिए अमेरिका की भूमिका काफी अहम है. दरअसल, वर्ल्ड बैंक के सबसे बड़े शेयरधारक होने की वजह से अध्यक्ष पद की नियुक्ति करता है. वर्तमान अध्यक्ष जिम योंग किम को 2012 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नामित किया था. ये पहली बार है जब डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई में वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष का चयन होगा. बता दें कि यूरोपीय देश अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के प्रमुख का चुनाव करते हैं.
Monday, January 14, 2019
जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 6 हफ्ते में जवाब मांगा
दस प्रमुख सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को निजी कम्प्यूटरों की जांच का अधिकार देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। वकील मनोहर लाल शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी। इस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से 6 हफ्ते में जवाब मांगा है।
सरकार का नोटिफिकेशन गैर संविधानिक: याचिकाकर्ता
गृह मंत्रालय ने 20 दिसंबर 2018 को नोटिफिकेशन जारी कर सीबीआई, आईबी और ईडी जैसी 10 एजेंसियों को कंप्यूटरों की जांच का अधिकार दिया था। इसमें कहा गया कि प्रमुख एजेंसियां किसी भी व्यक्ति के कम्प्यूटर से जेनरेट, ट्रांसमिट या रिसीव हुए और उसमें स्टोर किए गए किसी भी डेटा को देख सकेंगी। यह अधिकार आईटी एक्ट की धारा-69 के तहत दिया गया है। इस नोटिफिकेशन को याचिकाकर्ता मनोहर लाल शर्मा ने गैर-संविधानिक बताते हुए जनहित याचिका दायर की।
कांग्रेस ने बताया था निजता पर प्रहार
इस मामले में कांग्रेस ने कहा था कि अबकी बार मोदी सरकार ने निजता पर वार किया है। राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा था कि देश को एक पुलिस राज्य में बदला जा रहा है। यह समस्या का हल नहीं है। एक अरब से ज्यादा भारतीयों के बीच साबित हो गया कि आप (नरेंद्र मोदी) एक असुरक्षा महसूस करने वाले तानाशाह हैं। इस पर सरकार ने जवाब दिया कि कंप्यूटर डेटा की जांच के नियम यूपीए सरकार के समय साल 2009 में बने थे। अब सिर्फ संबंधित एजेंसियों को नोटिफिकेशन जारी किया गया है।
क्या है आईटी एक्ट की धारा-69 ?
इसके मुताबिक अगर केंद्र सरकार को लगता है कि देश की सुरक्षा, अखंडता, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्त बनाए रखने या अपराध रोकने के लिए किसी डेटा की जांच की जरूरत है तो वह संबंधित एजेंसी को इसके निर्देश दे सकती है।
शाही स्नान : 15, 21 जनवरी, 4,10,19 फरवरी, 4 मार्च
इतिहास : प्रयाग कुंभ का लिखित इतिहास में जिक्र गुप्तकाल में (चौथी से छठी सदी) मिलता है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किताब में कुंभ का जिक्र किया। वह 617 से 647 ईसवीं तक भारत में रहे थे। लिखा है कि प्रयाग में राजा हर्षवर्धन ने अपना सब कुछ दान कर राजधानी लौट जाते हैं।
मेले के आयोजन में राज्य सरकार की 20 और केंद्र सरकार की 6 संस्थाएं और विभाग लगे हैं। मेला क्षेत्र में पीने के पानी के लिए 690 किमी लंबी पाइपलाइन बिछाई गई है। साथ ही 800 किमी लंबाई में बिजली की सप्लाई पहुंचाई गई है।
25 हजार स्ट्रीट लाइट लगाई गई हैं। 7 हजार स्वच्छता कर्मी और 20 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। 4 पुलिस लाइन समेत 40 पुलिस थाना, 3 महिला थाना, 62 पुलिस पोस्ट बनाई गई हैं।
पहली बार कुंभ में 2 इंटीग्रेटेड कंट्रोल कमांड एंड सेंटर बनाए गए हैं। यह मेला क्षेत्र में आने वाली भीड़ और ट्रैफिक को नियंत्रित करने और सुरक्षित बनाने का काम करेगा। एक सेंटर पर करीब 116 करोड़ रुपए का खर्च आ रहा है।
पहली बार में ऑर्टीफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल हो रहा है, यह भीड़ का मैनेजमेंट करेगी। श्रद्धालुओं के लिए वर्चुअल रियलिटी(वीआर) सेवा उपलब्ध कराने के लिए 10 स्टाॅल बनाए गए हैं।
सरकार का नोटिफिकेशन गैर संविधानिक: याचिकाकर्ता
गृह मंत्रालय ने 20 दिसंबर 2018 को नोटिफिकेशन जारी कर सीबीआई, आईबी और ईडी जैसी 10 एजेंसियों को कंप्यूटरों की जांच का अधिकार दिया था। इसमें कहा गया कि प्रमुख एजेंसियां किसी भी व्यक्ति के कम्प्यूटर से जेनरेट, ट्रांसमिट या रिसीव हुए और उसमें स्टोर किए गए किसी भी डेटा को देख सकेंगी। यह अधिकार आईटी एक्ट की धारा-69 के तहत दिया गया है। इस नोटिफिकेशन को याचिकाकर्ता मनोहर लाल शर्मा ने गैर-संविधानिक बताते हुए जनहित याचिका दायर की।
कांग्रेस ने बताया था निजता पर प्रहार
इस मामले में कांग्रेस ने कहा था कि अबकी बार मोदी सरकार ने निजता पर वार किया है। राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा था कि देश को एक पुलिस राज्य में बदला जा रहा है। यह समस्या का हल नहीं है। एक अरब से ज्यादा भारतीयों के बीच साबित हो गया कि आप (नरेंद्र मोदी) एक असुरक्षा महसूस करने वाले तानाशाह हैं। इस पर सरकार ने जवाब दिया कि कंप्यूटर डेटा की जांच के नियम यूपीए सरकार के समय साल 2009 में बने थे। अब सिर्फ संबंधित एजेंसियों को नोटिफिकेशन जारी किया गया है।
क्या है आईटी एक्ट की धारा-69 ?
इसके मुताबिक अगर केंद्र सरकार को लगता है कि देश की सुरक्षा, अखंडता, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्त बनाए रखने या अपराध रोकने के लिए किसी डेटा की जांच की जरूरत है तो वह संबंधित एजेंसी को इसके निर्देश दे सकती है।
शाही स्नान : 15, 21 जनवरी, 4,10,19 फरवरी, 4 मार्च
इतिहास : प्रयाग कुंभ का लिखित इतिहास में जिक्र गुप्तकाल में (चौथी से छठी सदी) मिलता है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किताब में कुंभ का जिक्र किया। वह 617 से 647 ईसवीं तक भारत में रहे थे। लिखा है कि प्रयाग में राजा हर्षवर्धन ने अपना सब कुछ दान कर राजधानी लौट जाते हैं।
मेले के आयोजन में राज्य सरकार की 20 और केंद्र सरकार की 6 संस्थाएं और विभाग लगे हैं। मेला क्षेत्र में पीने के पानी के लिए 690 किमी लंबी पाइपलाइन बिछाई गई है। साथ ही 800 किमी लंबाई में बिजली की सप्लाई पहुंचाई गई है।
25 हजार स्ट्रीट लाइट लगाई गई हैं। 7 हजार स्वच्छता कर्मी और 20 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। 4 पुलिस लाइन समेत 40 पुलिस थाना, 3 महिला थाना, 62 पुलिस पोस्ट बनाई गई हैं।
पहली बार कुंभ में 2 इंटीग्रेटेड कंट्रोल कमांड एंड सेंटर बनाए गए हैं। यह मेला क्षेत्र में आने वाली भीड़ और ट्रैफिक को नियंत्रित करने और सुरक्षित बनाने का काम करेगा। एक सेंटर पर करीब 116 करोड़ रुपए का खर्च आ रहा है।
पहली बार में ऑर्टीफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल हो रहा है, यह भीड़ का मैनेजमेंट करेगी। श्रद्धालुओं के लिए वर्चुअल रियलिटी(वीआर) सेवा उपलब्ध कराने के लिए 10 स्टाॅल बनाए गए हैं।
Monday, January 7, 2019
ग़रीब सवर्णों को 10 फ़ीसदी आरक्षण: नरेंद्र मोदी की मंशा पर क्यों है शक
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमज़ोर सामान्य वर्ग के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण का फ़ैसला किया है और इसके लिए संविधान संशोधन की बात कही जा रही है.
मीडिया में आ रही ख़बरों में कहा जा रहा है कि इसके लिए मोदी सरकार संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन का इरादा रखती है. इसके लिए उसे लोकसभा और राज्यसभा में संशोधन पर मुहर लगवानी होगी.
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने मोदी सरकार के इस फ़ैसले पर प्रतिक्रिया दी है. हालांकि अधिकतर दल इस फ़ैसले का सीधे-सीधे विरोध करने से बच रहे हैं, लेकिन तकरीबन सभी दल आम चुनावों से कुछ महीने पहले ऐसा कदम उठाने के लिए मोदी सरकार की आलोचना कर रहे हैं.
कांग्रेस ने कहा है कि वो हमेशा ग़रीबों के हित में उठाए गए कदमों का समर्थन करती है, लेकिन पार्टी ने सवाल पूछा है कि ग़रीबों को ये नौकरियां कब मिलेंगी.
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, "कांग्रेस हमेशा आर्थिक तौर से ग़रीबों के आरक्षण और उत्थान की समर्थक और पक्षधर रही है. दलित, आदिवासियों और पिछड़ों के संवैधानिक आरक्षण से कोई छेड़छाड़ न हो और समाज के ग़रीब लोग, वो चाहे किसी भी जाति और समुदाय के हों, उन्हें भी शिक्षा और रोजगार का मौका मिले."
सुरजेवाला ने ट्वीट किया, "वास्तविकता यह भी है कि चार साल आठ महीने बीत जाने के बाद और चुनाव में हार सामने देख केवल 100 दिन पहली ही मोदी सरकार को आर्थिक तौर पर ग़रीबों की याद आई है, ऐसा क्यों? यह अपने आप में प्रधानमंत्री और मोदी सरकार की नीयत पर प्रश्न खड़ा करता है."
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी सामान्य वर्ग के ग़रीबों को 10 फ़ीसदी आरक्षण के फ़ैसले को 'चुनावी जुमला' करार दिया.
ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसिलमीन (एआईएमआईएम) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि आरक्षण दलितों के साथ ऐतिहासिक अन्याय को सही करने के लिए दिया गया है. ग़रीबी दूर करने के लिए कोई भी कई योजनाएं चला सकता है, लेकिन आरक्षण न्याय के लिए बना है. संविधान आर्थिक आधार पर आरक्षण की मंज़ूरी नहीं देता है.
1950 में स्वीकार किए गए भारतीय संविधान ने दुनिया के सबसे पुराने और सबसे व्यापक आरक्षण कार्यक्रम की नींव रखी.
इसमें अनुसूचित जन जातियों और अनुसूचित जातियों को शिक्षा, सरकारी नौकरियों, संसद और विधानसभाओं में न केवल आरक्षण दिया गया बल्कि समान अवसरों की गारंटी भी दी गई.
ये आरक्षण या कोटा जाति के आधार पर दिया गया था. भारत में आरक्षण के पक्ष में दिया जाने वाला तर्क बेहद साधारण था, यानी, इसे सदियों से जन्म के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को खत्म करने के तरीक़े के तौर पर सही ठहराना.
यह उन लाखों दुर्भाग्यशाली लोगों के लिए एक छोटा सा हर्जाना भर था जिन्होंने अछूतपने के अपमान और नाइंसाफ़ी को हर रोज़ बर्दाश्त किया था.
साल 1989 में आरक्षण पर तब राजनीति तेज़ हो गई जब वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की सिफ़ारिशों के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को भी आरक्षण देने का फैसला किया.
उसके बाद से ही रह रहकर कई दल आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करते रहे हैं. यहां तक कि सत्ता में रही पार्टियों ने भी ग़रीब सवर्णों के लिए आरक्षण का फ़ैसला किया या किसी आयोग का गठन किया.
1991 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला किया था. हालांकि, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों के बेंच के इस फ़ैसले में ही कहा गया कि अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी को सभी तरह के आरक्षण की सीमा 50 फ़ीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए. संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में सामाजिक पिछड़ेपन को पहचान दी गई है.
बाद में जाट आरक्षण खत्म करने का फैसला देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि सिर्फ़ जाति पिछड़ेपन का आधार नहीं हो सकती. राजस्थान सरकार ने 2015 में उच्च वर्ग के ग़रीबों के लिए 14 प्रतिशत और पिछड़ों में अति निर्धन के लिए पांच फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी, उसे भी अदालत ने निरस्त कर दिया.
मीडिया में आ रही ख़बरों में कहा जा रहा है कि इसके लिए मोदी सरकार संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन का इरादा रखती है. इसके लिए उसे लोकसभा और राज्यसभा में संशोधन पर मुहर लगवानी होगी.
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने मोदी सरकार के इस फ़ैसले पर प्रतिक्रिया दी है. हालांकि अधिकतर दल इस फ़ैसले का सीधे-सीधे विरोध करने से बच रहे हैं, लेकिन तकरीबन सभी दल आम चुनावों से कुछ महीने पहले ऐसा कदम उठाने के लिए मोदी सरकार की आलोचना कर रहे हैं.
कांग्रेस ने कहा है कि वो हमेशा ग़रीबों के हित में उठाए गए कदमों का समर्थन करती है, लेकिन पार्टी ने सवाल पूछा है कि ग़रीबों को ये नौकरियां कब मिलेंगी.
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, "कांग्रेस हमेशा आर्थिक तौर से ग़रीबों के आरक्षण और उत्थान की समर्थक और पक्षधर रही है. दलित, आदिवासियों और पिछड़ों के संवैधानिक आरक्षण से कोई छेड़छाड़ न हो और समाज के ग़रीब लोग, वो चाहे किसी भी जाति और समुदाय के हों, उन्हें भी शिक्षा और रोजगार का मौका मिले."
सुरजेवाला ने ट्वीट किया, "वास्तविकता यह भी है कि चार साल आठ महीने बीत जाने के बाद और चुनाव में हार सामने देख केवल 100 दिन पहली ही मोदी सरकार को आर्थिक तौर पर ग़रीबों की याद आई है, ऐसा क्यों? यह अपने आप में प्रधानमंत्री और मोदी सरकार की नीयत पर प्रश्न खड़ा करता है."
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी सामान्य वर्ग के ग़रीबों को 10 फ़ीसदी आरक्षण के फ़ैसले को 'चुनावी जुमला' करार दिया.
ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसिलमीन (एआईएमआईएम) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि आरक्षण दलितों के साथ ऐतिहासिक अन्याय को सही करने के लिए दिया गया है. ग़रीबी दूर करने के लिए कोई भी कई योजनाएं चला सकता है, लेकिन आरक्षण न्याय के लिए बना है. संविधान आर्थिक आधार पर आरक्षण की मंज़ूरी नहीं देता है.
1950 में स्वीकार किए गए भारतीय संविधान ने दुनिया के सबसे पुराने और सबसे व्यापक आरक्षण कार्यक्रम की नींव रखी.
इसमें अनुसूचित जन जातियों और अनुसूचित जातियों को शिक्षा, सरकारी नौकरियों, संसद और विधानसभाओं में न केवल आरक्षण दिया गया बल्कि समान अवसरों की गारंटी भी दी गई.
ये आरक्षण या कोटा जाति के आधार पर दिया गया था. भारत में आरक्षण के पक्ष में दिया जाने वाला तर्क बेहद साधारण था, यानी, इसे सदियों से जन्म के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को खत्म करने के तरीक़े के तौर पर सही ठहराना.
यह उन लाखों दुर्भाग्यशाली लोगों के लिए एक छोटा सा हर्जाना भर था जिन्होंने अछूतपने के अपमान और नाइंसाफ़ी को हर रोज़ बर्दाश्त किया था.
साल 1989 में आरक्षण पर तब राजनीति तेज़ हो गई जब वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की सिफ़ारिशों के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को भी आरक्षण देने का फैसला किया.
उसके बाद से ही रह रहकर कई दल आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करते रहे हैं. यहां तक कि सत्ता में रही पार्टियों ने भी ग़रीब सवर्णों के लिए आरक्षण का फ़ैसला किया या किसी आयोग का गठन किया.
1991 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला किया था. हालांकि, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों के बेंच के इस फ़ैसले में ही कहा गया कि अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी को सभी तरह के आरक्षण की सीमा 50 फ़ीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए. संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में सामाजिक पिछड़ेपन को पहचान दी गई है.
बाद में जाट आरक्षण खत्म करने का फैसला देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि सिर्फ़ जाति पिछड़ेपन का आधार नहीं हो सकती. राजस्थान सरकार ने 2015 में उच्च वर्ग के ग़रीबों के लिए 14 प्रतिशत और पिछड़ों में अति निर्धन के लिए पांच फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी, उसे भी अदालत ने निरस्त कर दिया.
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