अक्सर सलाह दी जाती है कि जैकेट तभी पहनो जब आप बाहर निकलें जिससे उसका फायदा महसूस किया जा सके लेकिन क्या सच्चाई इतनी ही आसान है?
हवादार दफ्तर, गोदाम या क्लास में होने पर कोट पहने रहने का का बड़ा मन करता है.
लेकिन हमें अक्सर ये भी सलाह दी गई है कि ऐसा न करें क्योंकि जब आप बाहर निकलेंगे तो आपको 'कोट का फायदा महसूस' नहीं होगा.
ये आपकी स्वाभाविक आदतों के उलट लगेगा.
अगर आप का शरीर पहले से ही ठंडा है तो क्या आपको निश्चित तौर पर शरीर की गर्मी बनाए रखने के लिए कदम नहीं उठाने चाहिए?
लेकिन अब ऐसा लगता है कि मामला इतना आसान नहीं है. पूरी बात समझने के लिए हमें पहले ये जानना होगा कि हमें ठंड लगती क्यों है?
हमारा पूरा शरीर त्वचा में स्थित विशेष रूप से बने तंत्रिका तंतुओं पर स्थित छोटे-छोटे तापमान संवेदियों से ढंके होते हैं जिन्हें कोल्ड सेंसेटिव रिसेप्टर्स कहते हैं.
तापमान में जब गिरावट होती है तो ये रिसेप्टर मस्तिष्क को संकेत भेजना शुरू कर देते हैं और इस तरह तंत्रिका में तापमान की कोडिंग कर देते हैं.
इन कोल्ड रिसेप्टर्स को कभी-कभी मेनथॉल रिसेप्टर्स भी कहा जाता है.
क्योंकि ये मेनथॉल नामक उस रसायन से भी प्रभावित होते हैं जिसको त्वचा पर लगाने पर ठंड का अहसास होता है. ये तंत्रिका तन्तु समूचे शरीर पर पाए जाते हैं.
इसलिए केन्द्रीय तंत्रिका प्रणाली में इनका प्रवेश अलग स्तरों पर होता है.
बाहों, शरीर के मुख्य हिस्सों, टांगों या कंधों पर मौजूद रिसेप्टर्स मेरूदण्ड में स्थित तंत्रिका कोशिकाओं से जुड़ते हैं जबकि चेहरे से या मुंह के रिसेप्टर्स सीधे मस्तिष्क से जुड़ते हैं.
लेकिन तंत्रिकाएं विद्युतीय संकेतों का संचालन काफी जल्दी करती हैं.
इतनी जल्दी कि शरीर के ठंडे हिस्से से मस्तिष्क की दूरी कितनी है और ठंड का अहसास हमें कैसे होता है, इस पर दूरी का कोई असर नहीं रह जाता.
ये सारे संकेत मस्तिष्क के केन्द्र में स्थित बहुसंवेदी द्वार रक्षक थैलेमस तक पहुंचता है. थैलेमस से संकेत सोमैटो सेंसरी कॉटेक्स तक पहुंचते हैं जो ठंड का अहसास दिलाते हैं.
इसी से मस्तिष्क शरीर के सतह पर स्थित ठंडे स्थान का पता लगाता है और तापमान का भी अहसास दिलाता है.
बहुत अधिक या बहुत कम तापमान होने पर आपको त्वचा में हुए नुकसान का भी अहसास होता है.
कमरे में कोट पहनने से खुले हुए अंगों सहित सम्पूर्ण त्वचा का औसत तापमान बढ़ने की संभावना होती है
जब आप कमरे से बाहर या किसी ठंडी जगह से बाहर निकलते हैं तो आपकी तंत्रिका प्रणाली खुली हुई त्वचा, विशेष रूप से चेहरे से तापमान का अहसास करती है.
कमरे में कोट पहनने से खुले हुए अंगों सहित सम्पूर्ण त्वचा का औसत तापमान बढ़ने की संभावना होती है.
जब आप बाहर जाते हैं तो विशेष रूप से त्वचा के खुले हिस्सों पर हवा ठंडी लगेगी जबकि आपका कोट तापमान में आई गिरावट से आपके शरीर को बचाता है.
ये अहसास तब और भी बढ़ जाता है जब कोट पहनने की वजह से आपको अन्दर पसीना निकला हो जिसके कारण त्वचा का खुला हुआ भाग और तेजी से ठंडा होता है.
लेकिन जब आप ठंड के इस प्रारम्भिक अहसास से उबर जाते हैं तब भी कोट अपना काम करता है और आपको इसका लाभ मिलता है.
यदि आप बीमार न हों या बहुत अधिक या कम तापमान न झेल रहे हों तो आपका शरीर तापमान को 37 डिग्री सेल्सियस पर बनाए रखने में बहुत प्रभावी होता है.
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